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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें


अगर सौन्दर्यके साथ सद्गुण है, तो वह दिलका स्वर्ग है, उसमें दुर्गुण हो तो वह आत्माका नरक है-वह ज्ञानीकी होली और मूर्खकी भट्टी है।-कार्ल्स

सौन्दर्य आनन्द है और रसका आधार है। सृष्टिका यह सारा वैभव, प्रकृतिका अनुपम एक रूप-लावण्य, सौन्दर्यका उपादान है। इस वैभवपर जो सामूहिक, शान्त, मृदुल, मधुर, स्रिग्ध, रम्य-एक प्रकारसे अनिर्वचनीय प्रभाव मनपर पड़ता है वही सौन्दर्य है।

आप दर्पणमें अपना चेहरा देखते हैं। आपका रंग श्वेत, त्वचा कोमल, रक्त स्वस्थ, सब कुछ ठीक हैं। पर फिर भी चेहरेसे मायूसी टपकती है। मुरवमण्डलपर झुर्रियाँ पड़ी हुई हैं। मुद्रा तेजहीन और उत्साहशून्य है। अपने चेहरेपर जिन कृत्रिम प्रसाधनोंका आप प्रयोग करते हैं, जितना रुपया आप सौन्दर्य-प्रसाधनोंपर व्यय करते हैं, उनके बावजूद आपके मुखपर तेज नहीं। आकर्षण नहीं। इसका क्या कारण है?

संसारके मनोवैज्ञानिकोंने मनुष्यके चरित्रका विश्लेषणकर यह सिद्ध किया है कि मनुष्यके चेहरेके सौन्दर्यका केन्द्र मुखपर नहीं, उसके आन्तरिक मनोभावोंपर है। मुख तो एक दर्पणमात्र है, जिसपर हमारे आन्तरिक मनोभाव प्रकट होकर जनताके आकर्षण अथवा घृणाके केन्द्र बनते हैं।

हमारे मनमें दो प्रकारके मनोभाव है-(१) हर्ष, उल्लास, प्रेम, दया, प्रसन्नता, हास्य, आह्लाद, उत्साह, सहानुभूति आदि कल्याणकारी मनोभाव, (२) क्रोध, आवेश, चिन्ता, ईर्ष्या, दर्प, घृणा, भय आदि मानसिक तनाव रखनेवाले मनोभाव। प्रथम वर्गमें सुख-आकर्षण और आनन्दमय जीवन बनानेवाले तत्त्व हैं, तो दूसरे वर्गमें आस-पासके व्यक्तियोंको दुखी कर उत्तेजना उत्पन्न करनेवाले घातक तत्त्व मौजूद हैं। एक जीवनको परिपूर्ण, चेहरेको आकर्षक बनाते हैं, तो दूसरे उसे कटुता और चिन्तासे भर देनेवाले हैं।

मैं अपने परिवारसे सम्बन्धित एक अतीव सुन्दरी स्त्रीको जानता हूँ जिनका चेहरा चाँद-सा सुन्दर, त्वचा नवनीत-सी कोमल और रंग चमेलीके पुष्पकी भांति निखरा हुआ है। स्वास्थ्य बहुत उत्तम है। ईश्वरने जैसे समस्त सौन्दर्य कूट-कूटकर भर दिया हो। पर यदि आप उनकी ओर देखें, तो आपको तनिक भी आकर्षण प्रतीत न होगा। उनके घर पर्याप्त सम्पत्ति है; मान-प्रतिष्ठाकी कमी नहीं; हर प्रकारकी सुविधाएँ प्राप्त हैं,

फिर भी चेहरेपर निराशाकी कालिमा और चिन्ताकी रेखाएँ हैं। कहीं-कहीं झुर्रियाँ भी नजर आती हैं। वे हर समय अपने-आपको एक दार्शनिक-जैसा बनाये रखती हैं मानो समस्त संसारका बोझ उन्हींपर आ गया हो! वे जीवनको भारस्वरूप मानती हैं; किसी-न-किसी कल्पित असुविधा, कमी, असंतोष या आनेवाली विपत्तिकी बात सोचती रहती हैं। उन्हें यह भ्रम है कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ है। अतः वे कल्पित भय, क्रोध और आवेशमें जलती-भुनती रहती हैं। उनसे बातें कीजिये तो अपनी सैकड़ों परेशानियों गिना डालेंगी।

कल्पित परेशानियों-चिन्ताओं, नाराजी और असंतोषने उनके मुखमण्डलके सौन्दर्यको नष्ट कर दिया है।

हम मनमें जैसे भाव रखते हैं, उनका गुप्त प्रभाव हमारे मुखमण्डलसे प्रकाशित हुआ करता है। जैसी भावनाएँ स्वयं हमारे मनमें भरी हैं, बाहर जगत्से, अपने इष्ट-मित्रों, परिवारके सदस्यों तथा सहयोगियोंसे हम वैसी ही भावनाओंकी अपेक्षा रखते हैं। हमारा आकर्षण चेहरेकी बनावटकी अपेक्षा इन्हीं भावात्मक प्रभावोंका आकर्षण है। सौन्दर्य हमारी मानसिक अवस्था, विचारोंके चुनाव, जीवनकी समस्याओंके प्रति दृष्टिकोणसे सम्बन्धित है। जब चिन्ता या कल्पित परेशानीके विचार मनमें जम जाते हैं, तो मनुष्य हर घड़ी नैराश्यमें डूबा रहता है; जीवनको भार-ग्रस्त समझता है, चेहरेपर मुर्दनी ले आता है और स्नायु-जालमें नाना विकार उत्पन्न कर लेता है। अनिष्टकी आशंका, कठिनाइयाँ अपराधी वृत्ति, हीनत्वकी भावना, परिवारकी छोटी-बड़ी उलझनोंके विचार मनुष्यके मुखमण्डलके सौन्दर्यको नष्ट करनेवाले संहारक तत्त्व है। ये मनुष्यके चेहरेपर एक प्रकारका तनाव उत्पन्न करते है। कालान्तरमें ये तनाव स्थायीरूप धारण कर लेते है और सौन्दर्य जाता रहता है। जीवन भारग्रस्त हो जाता है।

कुछ व्यक्ति बच्चोंको डराने-धमकाने अथवा मातहतोंपर रोब डालनेके लिये सदा गम्भीर मुद्रा बनाये रखते हैं; बात-बातपर क्रोध करते और डाँट-फटकार बताते हैं। यह आवेशपूर्ण स्थिति भी सौन्दर्यकी शत्रु है। जिस प्रकार रेशमी वस्त्रमें मोड़ने या तह लगाकर रखनेसे उसमें सिकुड़न उत्पन्न हो जाती है और बार-बार प्रयत्न करनेसे भी दूर नहीं होती, वही बात चेहरेकी झुर्रियोंके भी सम्बन्धमें है। चेहरेकी रगोंको, नसोंको किसी विशिष्ट मुद्रामें देरतक बनाये रखने, मोड़ने या सिकोड़ने-की आदत पड़ जानेपर वह आसानीसे दूर नहीं की जा सकती। फिर तो मनुष्य इस निराशावादी या उग्र रहनेकी आदतसे लाचार हो जाता है। उसे लाख प्रयत्न करनेपर भी उससे छुटकारा नहीं मिलता।

अतः सौन्दर्यके लिये मनमें यौवन, उत्साह, प्रफुल्लता, प्रेम, सहानुभूति आदिके उदार विचार प्रचुरतासे आने दीजिये। इन्हीं भव्य विचारोंको स्थान दीजिये। ऐसा प्रयत्न कीजिये कि इन शुभ सात्त्विक कल्याणकारी मनोभावोंका प्रकाशन आपके मुखमण्डलपर हो! प्रायः अभिनेता इन मनोभावोंको मुरवपर लानेका दीर्घकालतक अभ्यास करते है। मनोविज्ञानका यह नियम है कि जो भाव आप मुखमण्लपर प्रकट करेंगे, वैसा ही अंदर मनमें अनुभव भी करेंगे। अतः आशा, उत्साह, उल्लास, प्रफुल्लता, मस्तीका अभिनय किया कीजिये। इनकी छाया धीरे-धीरे आपके मुखमण्डलपर प्रकट होकर उसे सुन्दर बना देगी। प्रारम्भमें छोटे-छोटे शुभ मनोभावोंको मुखमण्डलपर प्रकाशित करें। उग्र मनोविकार मुखश्रीको नष्ट कर देते हैं। इस बातको सदैव ध्यानमें रखते हुए अपनेको मानसिक उद्वेगों-शोक, भय, क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, उत्तेजना, निराशा आदिका शिकार न बनने दें। मनमें शान्ति, आनन्द और उत्साहवर्धक विचारोंको स्थायीरूपसे स्थान दें। सद्विचार, सद्धावना, सदाचरणके स्थायित्वसे ही मुखाकृति आकर्षक और प्रभावशाली बन सकती है। 

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

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